भाजपा और संघ की अवसरवादी राजनीति

बात उन दिनों की है जब वीपी सिंह के बाद चंद्रशेखर सिंह की सरकार गिरने पर देश में मध्यावधि चुनावों के साथ ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए थे। उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से कल्याण सिंह की सरकार बनी थी। उस समय मैं बीए द्वितीय वर्ष का विद्यार्थी था। क्षेत्र में अच्छी खासी लोकप्रियता होने की वजह से जोश और उत्साह दोनों चरम पर थे। राम मंदिर निर्माण आंदोलन ने फिर से जोर पकड़ा था। प्रदेश में भाजपा की सरकार थी तो आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ता पूरे जोश में थे। राम मंदिर निर्माण के नाम पर उत्तर भारत में हिन्दुत्व का माहौल बन चुका था। To read more click the link below.

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डरावना डेरा या राजनीति

डेरा सच्‍चा सौदा, गुरमीत राम रहीम, कार्रवाई, मीडिया, राजनीति, हिंसा, धर्म और सेवा आदि अनेक मुद्दों पर सोशल मीडिया पर विचारों की भरमार है। लेकिन कुछ विचार लोगों की आंखें खोल देते हैं। यहां हम उन्‍हीं कुछ चुने हुए विचारों को प्रस्‍तुत कर रहे हैं।

प्रमोद शुक्‍ला लिखते हैं-मित्रों, साथी विजय राज सिंह का यह विचार भी महत्वपूर्ण है, आप इससे सहमत या असहमत होने के लिए स्वतंत्र हैं, पर पहले इस विचार की गहराई को समझने की जरूरत है।

“धर्मो रक्षति रक्षितः”

रामरहीम ने रेप और हत्या समेत जितने अपराध किये/करवाए, चाहे अब ज़ाहिर या अभी भी गुप्त, सब गलत हैं।

न्यायालय ने जो फैसला दिया, उसका समर्थन करते हैं। पर साथ ही, उनका डेरा हर कहीं खुलना चाहिए, खासकर बंगाल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, केरल आदि, ताकि धर्म बना रहे। हिन्दू “दलितों” गरीबों, और पिछड़ों का जितना कल्याण इनका डेरा करता आया है, मिशनरी या वक्फ क्या, कोई नहीं करता। सरकार तक उनको सिर्फ वोटबैंक मानती है, सरकार बना पाने के सौदे के तौर पर आरक्षण बना रहने देती है, थोड़ा बढ़ा भी देती है। बिलकुल घपलेबाज़ी है उस सौदे में।

सच्चा सौदा इन (“दलितों” आदि) का सिर्फ डेरा के साथ है। वह इनको पालते हैं, यह धर्म को। इसी को “धर्मो रक्षति रक्षितः” कहा गया है। हमारी दृष्टि में, हिंदुत्व में डेरा का यह अमूल्य योगदान है। न सिर्फ वह हिन्दुओं को कन्वर्ट होने से रोकने में अच्छा काम कर रहे हैं, बल्कि सिखों और हिन्दुओं को वैसे ही एक मानते हैं जैसे बिलकुल शुरुआत में था। साथ ही, यह जहां एक तरफ “सर्व धर्म सम भाव” के जरिये “सहिष्णुता” ले कर चलते हैं, वहीं उस अधूरे श्लोक को “धर्म हिंसा तथैव च” से पूरा कर सनातन का पूरा स्वरूप प्रकट करते हैं।

फैसला आने पर जो हिंसा डेरा ने किया, वह सरासर गलत है, और अगर नुकसान की भरपाई सम्पत्ति के जाब्ते से होना तय हुआ है, तो प्रार्थना है कि बिलकुल वैसा ही हो, उस आदेश के खिलाफ डेरा हर अपील पर हारे। मगर मूल उद्देश्य का बना रहना जरूरी है। यह डेरा न सही, कोई और सही। भांगड़ा, ढाबे और तंदूरी की ही तरह यह पंजाबी चीज भी उतनी ही अखिल-भारतीय हो।

दिलीप सी मंडल की यह प्रस्‍तुति लाजवाब है- क्या अजीब संयोग है। राम रहीम को जिस हेलीकॉप्टर में जेल ले जाया गया, वह वही हेलीकॉप्टर था, जिस पर बैठकर नरेंद्र मोदी ने 2014 में चुनाव प्रचार किया था। यानी ऑगुस्टा वेस्टलैंड AW139 हेलीकॉप्टर। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी अब एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करते हैं।

राजेश चंद्रा लिखते हैं- ये आरएसएस भाजपा के बलात्कार सेनानी हैं। हिन्दू साध्वियों का बलात्कार करने वाले गुरमीत राम रहीम को न्याय दिलाने के लिये भारतीय सेना से लड़ रहे हैं।

आलोक नंदन लिखते हैं- अंधा और बेतरतीब नेतृत्व विध्वंस के सिवा आपको कुछ नहीं दे सकता…व्यवस्था स्थापित करने की न्यूनतम क्रूरता सीमा क्या है ? और इसको तय करने का अधिकार किसे है ? ………

पुष्‍परंजन लिखते हैं- लम्बी ज़ुबान वाले साक्षी महाराज से सोच समझ कर बयान दिलवाया गया! बदज़ुबानी में पीएचडी कर चुके साक्षी महाराज के ज़रिये दो काम हुआ है। एक, न्यायपालिका को धमकाना। दूसरा, डेरा समर्थक वोट बैंक को यह बताना कि बीजेपी की इच्छा के विरुद्ध यह निर्णय हुआ है।

कोर्ट चाहे तो मानहानि ही नहीं, अदालत को धमकाने के मामले में महाराज जी को एक बार फिर तिहाड़ भेज सकती है। यों,  बलात्कार के आरोप वाले मामले आते हैं तो साक्षी महाराज का अगस्त 2000 वाला पुराना दर्द उखड आता है। बलात्कार के मामले में तिहाड़ रिटर्न हैं साक्षी महाराज।

सवाल यह है कि क्या इस देश में सभी अपराधियों को सरकार गेस्ट हाउस उपलब्ध कराती है? तो फिर इस बलात्कारी बाबा को अम्बाला जेल के बदले, गेस्ट हाउस देकर दामाद जैसा ट्रीटमेंट किस बिना पर? सीबीआई कोर्ट से निकला तो पुलिस गार्ड ऑफ़ ओनर के अंदाज़ में खड़ी थी। अपराधी घोषित होने के बाद भी बाबा वीवीआईपी है। हेलीकॉप्टर से गेस्ट हाउस पधारे।

मोदी-खट्टर सरकार को 30 लोगों के मरने 300 के घायल होने से अधिक चिंता बलात्कारी बाबा को आरामदेह सुविधाएँ देने की है ! ऐसा लचर और लिजलिजा मुख्यमंत्री पूरे जीवन में मैंने नहीं देखा। इस शख्स ने एक बार भी हिंसा फ़ैलाने वाले गुरमीत के गुंडों का नाम नहीं लिया। पूरे बयान में यह थकेला मुख्यमंत्री “कुछ लोग”-” कुछ लोग ” करता रहा !

गोदी के गदेलवा और मीडिया

श्रीकांत सिंह।

गोदी का गदेला तो सुना था लेकिन गोदी का मीडिया पहली बार सुन रहा हूं। मीडिया की चुनौतियां इतनी जटिल हैं कि गोद लिए बगैर उसे बचाया नहीं जा सकता। हर मीडिया हाउस को किसी न किसी ने गोद ले रखा है। गोदी में मीडिया खुद को सेफ महसूस करता है तो मीडियाकर्मी अपनी नौकरी। और क्‍या चाहिए इस देश को। मीडियाकर्मियों की नौकरी चलती रहे और सरकार की गोद में मीडिया महफूज रहे। पत्रकारिता महफूज रहने की आखिर जरूरत ही क्‍या है।

पत्रकार अगर यह सोचते हैं कि उनके बगैर इस देश में ज्ञान नहीं बंट पाएगा तो यह उनका मुगालता है। आज ज्ञान इतना स्‍मार्ट हो गया है कि वह खुद ब खुद आपके पास पहुंच जाता है। अब मध्‍य प्रदेश के मंदसौर को ही लें तो वहां बताया जा रहा है कि कोई गोली नहीं चलाई गई, लेकिन छह किसानों के मारे जाने की जानकारी आप लोगों तक पहुंच ही गई है। तो जो लोग यह सोच रहे हैं कि मीडिया को गोद ले लेंगे तो लोग ज्ञान से वंचित रह जाएंगे, यह उनकी बहुत बड़ी भूल है। मीडिया को आप अपनी तरह से चलाइए और ज्ञान आपको अपनी तरह से चलाता रहेगा।

उत्‍तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने भी खुद को गोद लेने की आग्रहपूर्ण विनती की थी, जिस पर लोगों ने कड़ी आपत्ति जताई थी कि उनकी उमर गोद लेने की नहीं है। लोग शायद गोद का व्‍यापक मतलब नहीं समझ पाए। तभी तो उन्‍होंने अपनी अज्ञानता प्रकट कर दी। गोद का मतलब अभयदान, सुरक्षा और हर गलती पर माफी की विनती स्‍वीकार करने से है। मोदी जी दूरदर्शी हैं। वह पहले से जानते थे कि उत्‍तर प्रदेश को चलाना आसान काम नहीं है। उत्‍तर प्रदेश की जनता उन्‍हें गोद ले लेगी तो हर गलती माफ। क्‍योंकि उत्‍तर प्रदेश के लिए तो मोदी जी गोदी के गदेलवा हैं।

गोद के विज्ञान को शायद सबसे पहले मोदी जी ने समझा। उसके बाद मीडिया वालों को इसका ज्ञान हुआ। अब मीडिया वाले गोदी में बैठने के लिए तैयार हैं। कोई किसी की गोदी में बैठ रहा है तो कोई किसी की गोदी में। आपके पास पैसा है तो आप भी किसी मीडिया हाउस को गोद ले लीजिए। क्‍या पता कब जरूरत पड़ जाए कि कोई मीडिया हाउस आपको गोद ले और आपके आर्थिक अपराधों पर मिट्टी डालने के काम आ जाए।

इसलिए गोद लिए जाने की कोई उम्र और शर्त नहीं होनी चाहिए। अब देश की इतनी बड़ी पार्टी कांग्रेस मौका पड़ने पर क्षेत्रीय दल सपा की गोद में जा बैठी। पाकिस्‍तान चीन की गोद में बैठा है। आतंकी पाकिस्‍तान की गोद में बैठे हैं। जो किसी की गोद में नहीं बैठा है, उसका नष्‍ट होना तय है। उसके विकास की कोई संभावना नहीं है। आप मानव हैं पशु नहीं कि पैदा होते ही चलने फिरने लगें। मानव की विकास यात्रा गोद से शुरू होती है और ईश्‍वर की गोद पर समाप्‍त होती है। इसलिए आपको यदि कोई गोदी मीडिया कहे तो कृपया शर्माइगा नहीं।

दरअसल, पत्रकारिता कभी नहीं कहती कि उसे गोद लिया जाए। लेकिन गोद लिए जाने की सर्वाधिक आवश्‍यकता उसी को है। आप कल्‍पना करें कि कितना जोखिम उठाकर एक रिपोर्टर जनहित की खबरों को सामने लाता है और उससे समय समय पर समाज का भला भी होता है। लेकिन उसी रिपोर्टर को जब संस्‍थान से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया जाता है तो उसकी मदद के लिए कोई भी सामने नहीं आता। आज जो भी मदद मिल रही है, वह मीडिया हाउस को मिल रही है। लेकिन मीडिया हाउस ही पत्रकारिता नहीं है।

आज मीडिया हाउस अलग-अलग राजनीतिक दलों की सेना के अंग बन गए हैं। वे उनकी ओर से सूचना के प्रक्षेपास्‍त्र से विरोधियों पर हमले कर रहे हैं और उसकी एवज में लाभ उठाकर फल फूल रहे हैं। इस लड़ाई में अगर कोई उपेक्षित है तो वह है पत्रकार। आज पत्रकारों को वेजबोर्ड के अनुसार वेतन नहीं मिल रहा है। उनका भविष्‍य अनिश्चितता के खतरे में है, लेकिन इस वर्ग की फिक्र किसी राजनीतिक दल को नहीं है क्‍योंकि राजनीतिक दलों ने तो मीडिया हाउस को ही गोद ले रखा है। इतने से ही उनका काम चल जाता है। फिर वे पत्रकारों की फिक्र क्‍यों करेंगे।

 

दूर से ही दिखने लगा है राजनीतिक संकट

श्रीकांत सिंह

हिंदुओं की एकता के नाम पर बडी मुश्किल से देश की जनता एकजुट हुई है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और मोदी मिलकर उसी जनता का भरोसा तोड रहे हैं। गरीबों की गैस सब्सिडी बंद है। कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इंडियन ऑयल और पीएमओ तक शिकायत करने का कोई असर नहीं हो रहा है। दिल्‍ली और यूपी में मेट्रो ट्रेन के किराये में बेतहासा इजाफा किया जा रहा है। यही तो एक जनहितकारी और पर्यावरण को अनुकूल बनाने वाली व्‍यवस्‍था थी, जिसे धंधे पर लगाया जा रहा है। मेट्रो के किराये में एकायक इतना इजाफा कर दिया गया है कि अब हालत यह है कि लोग अपनी कार सडकों पर लाने की सोचने लगे हैं।

उत्‍तर प्रदेश में भाजपा की बंपर जीत का भी कोई लाभ जनता को नहीं मिल रहा है। पुलिस आज भी लोगों के एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है। कानून व्‍यवस्‍था की हालत खराब है। सरकार मजदूरों की नहीं, मालिकों की बात सुन रही है। लोग परेशान हैं, लेकिन सरकार पर उसका कोई असर नहीं है। सरकार सोच रही है कि विपक्ष तो समाप्‍त ही हो गया और मीडिया पालतू हो गया है। अब चाहे कोई काम करें या नहीं, अकंटक राज करेंगे।

ऐसा सोचना सरकार और भाजपा दोनों के लिए आत्‍मघाती होगा। अब यदि जनता का भरोसा टूट गया तो जनता मान लेगी कि तिकडम से उसे मूर्ख बनाया गया है। ऐसी हालत में क्षेत्रीय दलों का उदय फिर होने लगेगा और किसी पार्टी के लिए बहुमत हासिल करना कठिन हो जाएगा। उत्‍तर प्रदेश और बिहार में आक्रोश का माहौल बनने लगा है। राजनीतिक संकट दूर से ही दिखाई पडने लगा है।