वेज बाेर्डाें की कहानी, मीडिया वालाें की मनमानी-एक

श्रीकांत सिंह।

श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचा‎री मजीठिया वेजबाेर्ड के अनुसार वेतन अाैर भत्ताें के भुगतान के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार अखबार मालिकाें के पक्ष में है, जबकि यह मुद्दा भाजपा के चुनाव घाेषणा पत्र में शामिल है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से जब पत्रकाराें ने मजीठिया लागू कराने की बात कही ताे उन्हाेंने इसके बारे में अनभिज्ञता जता दी। इसी प्रकार नाेएडा में विधायक पंकज सिंह ने भी अपने अल्पज्ञान का हवाला देकर मुद्दे से पल्ला झाड़ लिया। पत्रकार इस मुद्दे काे कांग्रेस के चुनाव घाेषणापत्र में शामिल कराने के लिए मेल कर रहे हैं। सवाल यह है कि इतने अल्पज्ञान वाले नेता हमारा भला कैसे कर पाएंगे? अालेखाें की धारावाहिक कड़ियां इन नेताअाें का ज्ञान बढ़ाने की एक काेशिश भर हैं।

श्रमजीवी और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) ‎विविध प्रावधान अ‎धिनियम, 1955 श्रमजीवी पत्रकारों और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचा‎रियों की सेवा शर्तों के ‎लिए ‎विनियमन प्रदान करता है। इस अ‎धिनियम की धारा 9 और 13सी अन्य ‎विषयों में क्रमश: श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचा‎रियों के संबंध में वेतन दरों के ‎निर्धारण अथवा सुधार के ‎लिए दो वेतन बोर्डों के गठन के ‎लिए कानून का प्रावधान मुहैया कराती है। केन्द्र सरकार आवश्यकता पड़ने पर वेतन बोर्डों का गठन करती है ‎जिसमें समाचारपत्र प्र‎तिष्ठानों से संबं‎धित तीन व्य‎क्तियों का प्र‎तिनिधित्व होता है।

कैसे गठित हाेता है वेज बाेर्ड
तीन व्य‎क्ति समाचार पत्र प्र‎तिष्ठानों के संबंध में ‎नियोक्ताओं का प्र‎तिनि‎धित्व करेंगे।
तीन व्य‎क्ति इस अ‎धिनियम की धारा 9 के अंतर्गत वेतन बोर्ड के ‎लिए श्रमजीवी पत्रकारों का प्र‎तिनिधित्व करेंगे और तीन व्य‎क्ति धारा 13सी के इंतर्गत गैर-पत्रकार समाचार पत्र कर्मचा‎रियों का प्र‎तिनिधित्व करेंगे।
चार स्वतंत्र व्य‎क्तियाें में से एक वह व्य‎क्ति होंगे जो उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं अथवा रह चुके हैं तथा उनकी ‎नियु‎क्ति अध्यक्ष के रूप में सरकार द्वारा की जाएगी।
1955 से सरकार ने श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचा‎रियों के ‎लिए 6 वेतन बोर्डों का गठन कर चुकी है। ‎

पहला वेजबाेर्ड (DIVATIA)

इसका गठन दाे मर्इ 1956 काे किया गया अाैर इसकी अनुशंसाअाें काे सरकार ने 10 मर्इ 1957 काे स्वीकार किया। इसकी संवैधानिक वैधता काे एक्सप्रेस न्यूज पेपर प्राइवेट लिमिटेड ने सुप्रीम काेर्ट में चुनाैती दी। सुप्रीम काेर्ट ने 30 अप्रैल 1957 काे इसे इस अाधार पर खारिज कर दिया कि इसे लागू करना उद्याेग की क्षमता से बाहर था। इस वजह से 14 जून 1958 काे जारी अध्यादेश काफी चर्चा का विषय बना जिसके अाधार पर केंद्र सरकार ने पत्रकाराें के लिए वेतन दरें तय करने की व्यवस्था की थी। बाद में (सितंबर 1958) श्रमजीवी पत्रकाराें के लिए अधिनियम संसद ने पारित किया। (जारी—अगली किश्त में मजीठिया वेज बाेर्ड तक की यात्रा का वृत्तांत)