नारद मोह के घेरे में पत्रकारिता

श्रीकांत सिंह

नींद में और कब तक रहोगे सुबह। बोझ पर बोझ कब तक सहोगे सुबह। लोक के तंत्र के मंत्र ही की तरह। बाज को हंस कब तक कहोगे सुबह।

मजीठिया अवमानना मामला सुप्रीम कोर्ट में लटक गया है। कुछ अखबारों की आरसी कट रही है, लेकिन दैनिक जागरण का मालिक छुट्टा घूम रहा है। बदहाल पत्रकारों की परवाह सुप्रीम कोर्ट को तो है ही नहीं। एकाध को छोड बाकी सुप्रीम कोर्ट के सभी वकील मस्त हैं। मामले को सुप्रीम कोर्ट में मेंशन करने की कोई जुर्रत तक नहीं कर रहा है। डर है कि कहीं जज साहब डांट कर भ्गा न दें।

तभी तो शरद यादव कहते हैं कि आज के दौर में पत्रकारिता की शवयात्रा निकाली जा रही है। लोकतंत्र चंद लालाओं की मुट्ठी में कैद है। खुश होकर तालियां बजाओ। मोदी जी का साम्राज्य बढता जा रहा है। राम राज्य नजदीक आ गया है। यह अलग बात है कि नारद नारायण की चौखट पर दम तोड रहे हैं। पत्रकारिता को नारद मोह ने घेर रखा है। देखते जाइए कि नारद मोह का क्या परिणाम होता है।

चिंता में डाल गए शरद यादव के अमृत वचन

श्रीकांत सिंह

पत्रकारिता जिस तेजी से पालतू हो रही है, उस पर उतनी तेजी से चिंता नहीं जताई जा रही है। समाज और देश दुनिया के लिए फिक्रमंद माने जाने वाले पत्रकारों की नई पीढी से ज्यादा उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती, क्योंकि उसका रास्ता खुदगर्जी के टी-प्वाइंट पर बंद होता है। मेरे पास भी व्यावहारिक होने के दबावपूर्ण सुझाव आ रहे हैं, लेकिन पता नहीं क्यों खुदगर्जी गले से नीचे नहीं उतर पा रही है।

इसी माहौल में पत्रकारिता पर जदयू नेता शरद यादव के अमृत वचन कानों में मधु घोल गए। उनकी तारीफ करनी ही पडेगी। इसलिए नहीं कि वह उस मजीठिया वेजबोर्ड की वकालत करते नजर आए, जिसका लाभ मुझे भी मिलना है। इसलिए भी कि वह चुनाव सुधार और लोकतंत्र पर मडरा रहे संकट की ओर भी इशारा कर गए हैं।

पत्रकारों के लिए गठित होने वाला वेजबोर्ड एक वर्ग विशेष के लिए राहत का पैकेज मात्र नहीं माना जाना चाहिए। यह तो लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक कवच भी है। यह पत्रकारिता और पत्रकार को पालतू बनने से बचा सकता है। इसलिए पत्रकारों के लिए वेजबोर्ड एक तरह से समूचे समाज के लिए राहत का पैकेज है। ऐसा समझ कर समाज का हर वर्ग पत्रकारों को वेजबोर्ड के अनुसार वेतन दिए जाने के समर्थन में आगे नहीं आएगा तो यह तय है कि हम एक दूसरे तरह की गुलामी की जंजीर में जकड लिए जाएंगे।

पत्रकारों के आर्थिक हालात जानबूझकर खराब रखने की साजिश

मजीठिया वेतनमान लागू करके देश की सभी समस्‍याओं का समाधान किया जा सकता है। पत्रकारों के आर्थिक हालात जानबूझकर खराब रखने की साजिश लंबे समय से चली आ रही है। उन्‍हें आज तक कोई भी वेतनमान नहीं दिया गया। यही वजह है कि टुच्‍चे टुच्‍चे लोग पत्रकारों को अपने हिसाब से घुमा लेते हैं। और जनहित के मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। इसकी प्रमुख वजह यह है कि अखबार के मालिकों और सरकारों का गठजोड़ लंबे समय से चला आ रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गठजोड़ को शिखर पर पहुंचा दिया है। तभी तो सुप्रीम कोर्ट से भी पत्रकारों को न्‍याय नहीं मिल पा रहा है। सरकार यदि इच्‍छा शक्ति का उचित प्रदर्शन करती तो पत्रकारों को मजीठिया वेतनमान कब का मिल गया होता और उन्‍हें सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर नाक न रगड़नी पड़ती। अब आप कहेंगे कि प्रधानमंत्री इसमें क्‍या कर सकते हैं… कानून की बात करें तो जो मुझे मोटामोटी जानकारी है, उसके अनुसार जो व्‍यवस्‍था अखबार मालिकों के लिए सरकारी विज्ञापन और कोटे के कागज की व्‍यवस्‍था करती है, उसी व्‍यवस्‍था में पत्रकारों के लिए वेतनमान की भी व्‍यवस्‍था है।

इस व्‍यवस्‍था को अव्‍यवस्थित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अखबार मालिकों के साथ खड़े नजर आते हैं। वह बिजली के लिए तो ईद, दीपावली और होली की चर्चा करते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि मजीठिया वेतनमान हिंदू पत्रकार को चाहिए तो मुसलिम पत्रकार को भी। हिंदू और मुसलमान एकजुट हो जाएं तो इन राजनीतिबाजों के होश ठिकाने लग जाएंगे। स्‍वच्‍छ पत्रकारिता और स्‍वच्‍छ राजनीति के लिए मजीठिया वेतनमान का लागू होना जरूरी है। उसके लिए सरकार अखबार मालिकों का सरकारी विज्ञापन और कोटे का कागज बंद करके उन्‍हें रास्‍ते पर ला सकती है। जब तक अखबार मालिकों को रास्‍ते पर नहीं लाया जाएगा, समाज और देश के विकास की कल्‍पना तक नहीं की जा सकती।

सारे भ्रष्‍टाचार और अपराधों की जड़ में कहीं न कहीं अखबार मालिकों की मनमानी काम करती है। क्‍योंकि उन्‍होंने पत्रकारिता को कुंद बना दिया है। उम्‍मीद है कि मोदी जी इस दिशा में अवश्‍य इच्‍छाशक्ति दिखाएंगे। महिमामंडन के मोह में उन्‍हें अखबार मालिकों की गुलामी करने से बाज आना चाहिए। दिल्‍ली और बिहार के चुनावों में दैनिक जागरण ने उनका महिमामंडन तो किया, लेकिन परिणाम क्‍या हुआ…भाजपा चुनाव हार गई। इसलिए महिमामंडन का कोई मतलब नहीं होता। ये तो पब्लिक है, सब जानती है। हिंदू और मुसलमान एकजुट हो रहे हैं। इसलिए मोदी जी को महिमामंडन की बैसाखी का परित्‍याग कर देना चाहिए और मजीठिया वेतनमान लागू कराने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।