यूं पहुंचा राष्ट्रीय सहारा और बन गया पत्रकार

बात 1993 की है। कृषक भारती स्कूल में की राजनीति झेलने के बाद दिल्ली पहुंच गया। वहां मुझे कंप्यूटर कोर्स करना था और पानी थी नौकरी भी। मेरे ताऊजी के लड़के दिनेश राजपूत और नरेश राजपूत नोएडा के सेक्टर 40 में रहते थे। रेलवे ड्राइवर नरेश उस समय फरीदाबाद की एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। दिनेश राजपूत के प्रयास से मैं नई दिल्ली स्थित नेहरू प्लेस में कम्प्यूटर कोर्स करने लगा।

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journalism: यूं पहुंचा राष्ट्रीय सहारा और बन गया पत्रकार

क्यों न काला दिवस के रूप में मनाया जाए प्रेस दिवस

फोर्थ पिलर टीम। हर वर्ष 16 नवंबर को मनाए जाने वाले राष्ट्रीय प्रेस दिवस को काला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। मेरे कई साथी मीडिया समूह में मालिकान और संपादकों की चाटुकारिता में लगे हैं। वे निश्चित रूप से मीडिया की जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहे हैं। उनमें कुछ तो मुझे नकारात्मक सोच का व्यक्ति बताते हैं। मैं उनसे पूछता हूं कि प्रेस दिवस पर क्या लिखूं। क्या यह लिख दूं कि मीडिया घराने हर उस कसौटी पर खरे उतर रहे हैं, जिसके लिए उनका गठन किया गया था। नहीं न ?

तो फिर नकारात्मक तो लिखना ही पड़ेगा। प्रेस का गठन समाज की समस्याओं, बुराइयों को जनता के सामने लिए किया गया था। कमजोर, जरूरमंद की आवाज बनने के लिए किया गया था। नौकरशाह, पूंजीपतियों और राजनेताओं की निरंकुशता पर अंकुश रखने के लिए किया गया था। वही प्रेस आज नौकरशाह, पूंजपीतियों और राजनेताओं की रखैल की तरह काम कर रहा है।

कहने को तो देश में अनगिनत प्रेस क्लब हैं। प्रेस परिषद हैं। पर ये सब संगठन बस शाम को दारू पीकर बकवास करने तक सिमट गए हैं। पिछले दिनों मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई के लिए कई स्वाभिमानी मीडियाकर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पक्ष में मोर्चा खोला। उन कर्मियों में से कितने को टर्मिनेट कर दिया गया। कितनों के दूर दराज ट्रांसफर कर दिए गए। यही मीडियाकर्मी मीडिया घरानों के दमन और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। मीडिया हाउसों में काम कर रहे मीडियाकर्मियों का शोषण किया जा रहा है।

कहां हैं प्रेस क्लब ? कहां है प्रेस परिषद ? कहां है प्रेस की जिम्मेदारियों के प्रति जवाबदेही वाले लोग? कहना गलत न होगा कि देश में यदि कहीं पर सबसे अधिक शोषण, दमन और उत्पीड़न है तो वह प्रेस ही है। जो मीडियाकर्मी दूसरों पर हो रहे अत्याचार को सामने लाते हैं, वही अपने साथ हो रहे अत्याचार को मूक समर्थन दे रहे है। यही नहीं, वे मीडिया मालिकों के हित साधने के साधन मात्र बन कर रह गए हैं। शायद यही वजह है कि वे मीडिया की जिम्मेदारियों तिलांजलि दे रहे हैं।

प्रेस के गठन की बात करें तो प्रथम प्रेस आयोग ने हमारे देश में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एवं पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी। परिणाम स्वरूप 4 जुलाई 1966 को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई। उसने 16 नंवबर 1966 से अपना विधिवत कार्य शुरू किया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है।

विश्व में लगभग 50 देशों में प्रेस परिषद या मीडिया परिषद हैं। भारत में प्रेस को वाचडॉग एवं प्रेस परिषद इंडिया को मोरल वाचडॉग कहा गया है। क्या ये हैं ? मीडिया को समाज का दर्पण एवं दीपक माना जाता है। क्या है ? चाहे समाचारपत्र हों या समाचार चैनल, उन्हें मूलत: समाज का दर्पण माना जाता है। इस दर्पण का काम है समाज की हू-ब-हू तस्वीर पेश करे। क्या यह तस्वीर पेश हो रही है?

कहना गलत न होगा कि गलत कामों पर पर्दा डालकर गलत काम करने वालों का महिमामंडन करना प्रेस का काम हो गया है। खोजी पत्रकारिता के नाम पर पीली व नीली पत्रकारिता न जाने कितने पत्रकारों के गुलाबी जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है। खुद भारतीय प्रेस परिषद ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में प्रेस ने ज्यादा गलतियां की हैं। अधिकारियों की तुलना में प्रेस के खिलाफ अधिक शिकायतें दर्ज हैं।

पत्रकारिता आजादी से पहले एक मिशन थी। आजादी के बाद यह एक व्यवसाय बन गई। इसमें मैनेजरों के रूप में काम करने वाले संपादकों, पत्रकारों का बहुत बड़ा योगदान है। यदि आपातकाल की बात छोड़ दें तो पत्रकारिता की ओर से भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई बड़ा अभियान नहीं छेड़ा गया। बल्कि पत्रकारिता खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है। वजह जो भी हो, प्रेस अपनी जिम्मेदारियों और जवाबदेही से नहीं बच सकता।

जब लोकप्रियता ही बन गई थी दुश्मन

बात उन दिनों की है जब मैं स्नातक कर रहा था। हमारे समाज के लोगों ने बड़े प्रयास के बाद भोजपुर गांव में कृषक भारती स्कूल के नाम से इंटर एक कालेज की स्थापना की थी। इस स्कूल में वैसे तो क्षेत्र के सभी वर्ग के बच्चे पढ़ते थे पर सबसे अधिक फायदा क्षेत्र की लड़कियों को हुआ था। जो लड़कियां करीब 5 किलोमीटर दूर किरतपुर पढ़ने के लिए नहीं जा पाती थीं उन्हें भी पढ़ने का एक अच्छा अवसर इस स्कूल में मिल गया था। क्षेत्र के लोगों के आपसी सहयेाग से स्कूल अच्छा चलने लगा था। To read more click the link below.

जब लोकप्रियता ही बन गई थी दुश्मन

भाजपा और संघ की अवसरवादी राजनीति

बात उन दिनों की है जब वीपी सिंह के बाद चंद्रशेखर सिंह की सरकार गिरने पर देश में मध्यावधि चुनावों के साथ ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए थे। उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से कल्याण सिंह की सरकार बनी थी। उस समय मैं बीए द्वितीय वर्ष का विद्यार्थी था। क्षेत्र में अच्छी खासी लोकप्रियता होने की वजह से जोश और उत्साह दोनों चरम पर थे। राम मंदिर निर्माण आंदोलन ने फिर से जोर पकड़ा था। प्रदेश में भाजपा की सरकार थी तो आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ता पूरे जोश में थे। राम मंदिर निर्माण के नाम पर उत्तर भारत में हिन्दुत्व का माहौल बन चुका था। To read more click the link below.

politics: भाजपा और संघ की अवसरवादी राजनीति

सिने जगत की बड़ी हस्तियों को मिला सम्मान

बारहवें ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल का समापन, बॉलीवुड कलाकारों और राजनीतिकों का मेला

श्रीकांत सिंह। बारहवें ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल के समापन समारोह में सिने जगत की कई बड़ी हस्तियों को सम्मानित किया गया। आयोजन यहां एनटीपीसी ऑडिटोरियम में किया गया। देश विदेश के कलाकार और राजदूत पहुंचे। संदीप मारवाह ने कहा, आज मुझे बहुत ख़ुशी है कि हमारा बारहवां ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल काफी सफल रहा। हमने कई वर्कशॉप, फिल्मों का प्रदर्शन व कई प्रदर्शनी का आयोजन किया।

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को हिंदी सिनेमा संरक्षक सम्मान

समापन समारोह में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को हिंदी सिनेमा संरक्षक के सम्मान से नवाजा गया। फिल्म निर्देशक प्रियदर्शन को हिंदी सिनेमा रत्न और हिंदी सिनेमा संरक्षक सम्मान से सम्मानित किया गया। अखिलेश मिश्रा, निर्देशक राहुल रवैल, टीपी अग्रवाल, बी एन तिवारी और श्याम श्रॉफ को भी सम्मानित किया गया। हिंदी सिनेमा भूषण सम्मान से प्रेम चोपड़ा, करैक्टर आर्टिस्ट विक्रम गोखले और मुज्जफर अली को सम्मानित किया गया।

इससे पहले दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। हिंदी सिनेमा की कई जानी मानी हस्तियां जैसे नीलिमा अजीम, मनीष पॉल, वीरेंद्र सक्सेना, राजेंद्र गुप्ता, दीपक बलराज विज, अरुण बख्शी, राजा बुंदेला, बृज गोपाल, दीपक केजरीवाल, अमिता नांगिया, नदीम खान, पार्वती खान, मीरा चोपड़ा, मनीष गुप्ता, पंकज पाराशर, उषा देशपांडे, कर्मा शेरिंग को हिंदी सिनेमा गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। To read more click the link below.

film: सिने जगत की बड़ी हस्तियों को मिला सम्मान

film: ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल में याद किए गए चाचा नेहरू

श्रीकांत सिंह। बारहवें ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन बाल दिवस पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को याद किया गया। बच्चों की फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। कई स्लम एरिया के बच्चों को फिल्म दिखाई गई और उनको एजुकेशन के लिए प्रेरित किया गया। कई रंगारंग कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया।

जाने माने करैक्टर आर्टिस्ट विक्रम गोखले, रोमानिया के राजदूत राडू ऑक्टेवियन डोबरे, फिल्म मेकर सचिन्द्र शर्मा,एक्ट्रेस मीरा चोपड़ा, मराठी एक्टर चार्ल्स थॉमसन, मिस यूक्रेन डेरीना गोर्डिएको और लॉयर अनूप बोस ने कार्यक्रम में शिरकत की। To read more click the link below.

FILM: ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल में याद किए गए चाचा नेहरू

FILM FESTIVAL: नोएडा में फ़िल्मी हस्तियों का जमावड़ा

शुरू हुआ 12वां ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल

श्रीकांत सिंह। नोएडा में 12वें ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल का आगाज हो गया है। फिल्मी हस्तियों का जमावड़ा लगा है। इस अवसर पर लव स्टोरी, बेताब, अंजाम और अर्जुन पंडित जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक राहुल रवैल ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा फिल्में बनती हैं। और देखी भी जाती हैं। लेकिन मैं आप सभी छात्रों से यही कहना चाहता हूं कि हम अधिक फिल्मों के साथ साथ फिल्मों की क्वालिटी पर भी ध्यान दें।

उन्होंने कहा कि ऐसी फिल्में बननी चाहिए जो आपको दर्शकों से जोड़ सकें। अपनी फिल्म में उन सभी पहलुओं पर ध्यान दें जो किसी भी फिल्म को बेहतरीन बना सकते हैं। वह मारवाह स्टूडियो में तीन दिवसीय 12वें ग्लोबल फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन में पहुंचे थे। समारोह के पहले दिन फिल्म निर्देशकों, निर्माताओं, कला प्रेमियों व अलग अलग देशों के राजदूतों का एक ही जगह जमावड़ा बेशक कार्यक्रम की सफलता का मानक बन गया। To Read More Click the link below.

FILM FESTIVAL: नोएडा में फ़िल्मी हस्तियों का जमावड़ा

Politics: महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन के लिए कांग्रेस जिम्मेदार!

सी.एस. राजपूत। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने की जो सिफारिश की थी उसे राष्ट्रपति ने मान लिया है। राज्यपाल इस मामले में थोड़े सख्त जरूर रहे पर उन्होंने न केवल भाजपा, शिवसेना बल्कि एनसीपी को भी सरकार बनाने का मौका दिया। हां राज्यपाल ने शिवसेना और एनसीपी को अतिरिक्त समय नहीं दिया, जिसका आरोप उन पर लग रहा है। शिवसेना सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है।

Politics: महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन के लिए कांग्रेस जिम्मेदार!

राम मंदिर का रास्ता साफ, किसी को पूरी खुशी किसी को हाफ

चरण सिंह राजपूत

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में रामलला को विवादित जमीन देकर अयोध्या में राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ कर दिया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए 5 एकड़ जमीन देने का आदेश देकर देश की धर्मनिपरेक्ष छवि को बरकरार रखा है। इसकी जिम्मेदारी भी कोर्ट ने केंद्र सरकार को दी है। हालात के हिसाब लगभग पूरा देश इस फैसले का स्वागत कर रहा है। स्वागत करने का बहुत बड़ा कारण विवादित मुद्दे का खत्म होना माना जा रहा है। 500 साल से ऊपर से चला आ रहा यह विवादित मुद्दा लगभग खत्म हो चुका है। इस मुद्दे पर न केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस, सपा के अलावा कई पार्टियों ने सियासत की रोटियां सेंकी हैं। आंदोलन में कितने लोगों की बलि चढ़ी है।

राम मंदिर का रास्ता साफ, किसी को पूरी खुशी किसी को हाफ

दुकानदारों का राज, राम भरोसे देश और समाज

चरण सिंह राजपूत

दिल्ली तीस हजारी कोर्ट से शुरू हुए विवाद में पुलिस और वकीलों की ओर से ताकत का प्रदर्शन कर दिया गया है। पहले वकीलों ने हड़ताल कर अपनी पॉवर दिखाई तो बाद में पुलिस वालों ने भी मोर्चा संभाल लिया। दिल्ली में 5 नवंबर को पुलिस वालों ने मांगें मान लेने पर भले ही अपना आंदोलन खत्म कर दिया हो पर यह विवाद और बढ़ रहा है। दिल्ली में पुलिस और वकीलों में पैदा हुई खटास का असर साफ दिखाई दिया। अदालतों में पुलिस वाले गायब रहे तो वकीलों ने पांच अदालतों में कामकाज ठप्प रखा।

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खुदकुशी की कोशिश

रोहिणी कोर्ट में तो एक वकील ने बिल्डिंग की छत पर चढ़कर खुदकुशी करने की कोशिश की। तीस हजारी कोर्ट विवाद के बाद वकीलों ने जो उत्पात मचाया, पुलिस ने अपने ही अधिकारियों के खिलाफ जो मोर्चा खोला, वह पूरे देश ने देखा। देश की राजधानी दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश में यही हाल है। न किसी को कानून पर विश्वास रहा है और न ही कानून के रखवाले कानून के प्रति गंभीर हैं। दिल्ली देश की राजधानी है तो वकीलों का विवाद पूरा देश देख रहा है। दिल्ली से ज्यादा खराब हालत बिहार, उत्तर प्रदेश और पंजाब की है। कहना गलत न होगा कि पूरा देश अराजकता से जूझ रहा है।

अराजकता संभालने नहीं आए मोदी शाह

गजब स्थिति है देश में। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास विदेशों में होने वाले विभिन्न समारोह के लिए समय है। अपने महिमामंडन में समारोह करवाकर अपनी उपलब्धियों का बखान करने का समय है पर देश में जब भी कहीं कोई अराजकता फैलती है तो वह कहीं नहीं दिखाई देते। यही हाल उनके सारथी गृहमंत्री अमित शाह का है। आजकल वह हर कार्यक्रम में पाकिस्तान और 370 पर बोलते दिखाई देते हैं। देश की राजधानी में पुलिस व वकीलों के बीच इतना बड़ा तांडव हुआ वह कहीं नहीं दिखाई दिए, जबकि वह पुलिस के संरक्षक माने जाते हैं।

केजरीवाल भी चुप

बात-बात पर ट्वीट करने वाले अरविंद केजरीवाल भी चुप्पी साधे बैठे हैं। सबको वोटबैंक चाहिए। हां मामला वोटबैंक का होता तो देखते कि कैसे इनकी आवाज में गर्मी आ जाती। भले ही देश में अराजकता का माहौल हो। रोजी-रोटी का बड़ा संकट लोगों के सामने खड़ा हो गया हो पर देश के कर्णधार इस समय देश समाज नहीं बल्कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की चिंता कर रहे हैं। पुलिस वाले पिटे पर उनको अपनी ड्यूटी करनी है। जिन अदालतों में खुद कानून नहीं बचा है भला वे क्या कानून की रक्षा करेंगी। जो वकील खुद कानून को नहीं मान रहे हैं भला वे किसी को क्या न्याय दिलाएंगे ? जिस पुलिस का खुद का विश्वास कानून से उठ रहा है वह भला किसी को कानून का क्या विश्वास दिलाएगी? देश की राजधानी ही नहीं बल्कि पूरा देश राम भरोसे है। वह बात दूसरी है कि भगवाधारी लोग इन राम को भी अयोध्या के राम से जोड़कर राम मंदिर निर्माण से जोड़ दें।

लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं

कहना गलत न होगा कि देश में लोकतंत्र नाम की कोई चीज रह नहीं है। हमारे देश में पुलिस और वकील को कानून का रखवाला माना जाता है। कानून के ये दोनों ही रखवाले सड़कों पर जमकर कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि लोकतंत्र के चार मजबूत स्तंभ माने जाने वाले न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया तमाशबीन बने हुए हैं। जरा-जरा सी बात ट्वीट करने करने वाले राजनेता चुप्पी साधे बैठे हैं। राजनेताओं को देश व समाज से ज्यादा चिंता महाराष्ट्र में सरकार बनाने और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की है।

गुस्सा उतारने की व्यवस्था

गजब स्थिति पैदा हो गई है देश में हिन्दू को मुसलमान से लड़ा दिया जाता है। दलित और पिछड़ों को सवर्णों से लड़ा दिया जाता है। गरीब को अमीर से लड़ा दिया जाता है। पुलिस को वकीलों से लड़ा दिया गया है। पड़ोसी आपस में लड़ रहे हैं। रिश्तेदार से रिश्तेदार लड़ रहा है। भाई से भाई लड़ रहा है। नजदीकी रिश्तों में बड़े स्तर पर खटास देखी जा रही है। जो युवा अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहना चाहिए वह जाति-धर्म और पेशों के नाम पर लड़ रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि लोगों में इस व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा नहीं है। देश के सियासतदारों ने एक रणनीति के तहत इस गुस्से को आपस में उतरने की व्यवस्था पैदा कर दी है।

माहौल वोटबैंक के लिए

वोटबैंक के लिए राजनीतिक दलों ने देश में ऐसा माहौल बना दिया है कि हर कोई निरंकुश नजर आ रहा है। यह सब सत्ताधारी नेताओं, ब्यूरोक्रेट के गैर जिम्मेदाराना रवैये और पूंजीपतियों की निरंकुशलता के चलते हो रहा है। हर कोई कानून को हाथ में लिए घूम रहा है। इन सब बातों के लिए कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए। यह व्यवस्था के खिलाफ एक प्रकार का गुस्सा है जो एक-दूसरे पर उतर रहा है। लोग सब देख रहे हैं कि केंद्र सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं को कैसे अपनी कठपुतली बना रखा है। विधायिका सत्ता की लोभी हो गई है। न्यायापालिका जजों के रिटायर्ड होने पर किसी आयोग के चेयरमैन बनने के लालच के नाम पर प्रभावित हो रही है। कार्यपालिका में भ्रष्टाचार चरम पर है।

मीडिया के काले कारनामे

मीडिया को चलाने वाले अधिकतर लोग काले काम करने वाले हैं। ऐसे में अराजकता नहीं फैलेगी तो फिर क्या होगा ? तीस हजारी कोर्ट में हुए विवाद के लिए कितने लोग वकीलों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं पर दिल्ली के अलावा भाजपा शासित प्रदेशों में पुलिस कितनी निरंकुशता के साथ काम कर रही है, यह किसी से छुपा है क्या ? दूसरों को कानून का पाठ पढ़ाने वाले खुद ही सड़कों पर अपने कार्यालयों में कानून से खेलते दिखाई देते हैं। ट्रैफिक व्यवस्था के नाम पर पुलिस ने देश में आम आदमी के साथ जो ज्यादती की, किसी से छिपी है क्या ? पुलिस की निरंकुशलता के चलते ही आम आदमी उससे पंगा लेने से बचता है। क्योंकि वकील कानून की सभी पेचीदगियां जानते हैं तो उन्होंने पुलिस से मोर्चा ले लिया है।

चल गई है भाजपा की दुकान

इन सबके बीच यह बात निकलकर आती है कि जहां वोटबैंक की बात आती है तो राजनीतिक दल अपनी नाक घुसेड़ देते हैं। यदि बात देश और समाज की हो तो चुप्पी साध लेते हैं। जैसे पुलिस और वकीलों के मामले पर साध रखी है। यह देश की विडंबना ही है कि जो गुस्सा एकजुट होकर देश के राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट और लूटखसोट करने वाले पूंजीपतियों के खिलाफ उतरना चाहिए वह आपस में उतर जा रहा है। हां यह बात जरूर है कि देश की व्यवस्था न सुधरी। देश के जिम्मेदार लोगों के जनतार को बेवकूफ बनाने के रवैये में बदलाव न आया तो वह दिन दूर नहीं कि हमारी देश की स्थिति भी पाकिस्तान जैसी हो जाए। देश पर राज कर रही भाजपा का तो एक ही लक्ष्य है कि देश में जितना धर्म और जाति के नाम, पेशों के नाम पर विवाद होगा, जितना देश में अंधविश्वास और पाखंड बढ़ेगा उतनी ही उनकी दुकान आगे बढ़ेगी।

देश में अराजकता बढ़ने का बहुत बड़ा कारण घरो में सियासत को घुसेड़ देना है। जरा-जरा सी बात पर विवाद हो जाना, एक-दूसरे से नफरत करना तो जैसे आम बात हो गई है। इसके लिए न केवल सत्ताधारी और विपक्ष के नेता जिम्मेदार हैं बल्कि निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर भागी चली जा रही जनता भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है।