सरकारीपना का रोग

श्रीकांत सिंह।

कुछ लोग पत्रकारिता में तारीफ को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं, लेकिन जब इसकी वकालत कुछ पत्रकार साथी भी करने लगते हैं तो ऐसा लगता है कि पत्रकारिता को सरकारीपना का रोग लग गया है। अरे भइया, पत्रकारिता में सरकार की तारीफ से ठीक उसी प्रकार परहेज करना चाहिए जैसे शुगर के मरीज को मीठा से परहेज करना होता है।

तारीफ के लिए सरकार के पास पूरा बजट होता है और वह उस पर खर्च भी करती है। मुफ्त में साहेब की तारीफ करने के लिए डॉक्‍टर ने बताया है क्‍या… आपको कोई भक्‍त पत्रकार कह देगा तो बुरा मान जाएंगे। यदि आप चारण बने रहना चाहते हैं और पत्रकार कहलाने का शौक भी चर्राया रहता है तो यह आपकी समस्‍या हो सकती है, पत्रकारिता की नहीं। वैसे, जनहित में सरकार की किसी कल्‍याणकारी योजना का विश्‍लेषण किया जा सकता है।