भाजपा का स्वाद बिगाड़ेंगे गन्ना किसान

चरण सिंह राजपूत

गन्ना किसानों का बढ़ता बकाया भुगतान भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव में तगड़ा झटका देने वाला है। वैसे तो गन्ना मीठा होता है पर भाजपा नेताओं के लिए इसका स्वाद कड़वा होगा। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की लगभग 70 सीटों पर गन्ना किसान बकाया भुगतान न होने से राज्य सरकारों के साथ ही केंद्र सरकार से भी बहुत नाराज हैं। चुनाव में सबक सिखाने के लिए तैयार बैठे हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो रहे पहले चरण के ही चुनाव में 8 सीटें गन्ना किसानों से प्रभावित हो रही हैं। बिजनौर, नगीना, मुजफ्फरनगर, कैराना, शामली, सहारनपुर और मेरठ में गन्ने की फसल बहुतायत में होती है। इस क्षेत्र में गन्ने के बकाया भुगतान के लिए लगातार आंदोलन हो रहे हैं। बिजनौर में तो एक आंदोलनकारी शहीद भी हो गया। मुजफ्फरनगर में किसान नेता रहे महेंद्र सिंह टिकैत का परिवार रहता है। आजकल उनके बेटों नरेश टिकैत और राकेश टिकैत ने भारतीय किसान यूनियन की कमान संभाल रखी है। पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने के बकाया भुगतान के लिए भकियू संघर्षरत है।

यह वह क्षेत्र है जिसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों का हवाला देते हुए हिंदुओं के वोटबैंक को स्वाभिमान से जोड़ दिया था। दरअसल, बिजनौर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी भारतेंद्र सिंह की चुनावी सभा में अमित शाह ने मुजफ्फरनगर दंगे की आड़ में हिंदुओं को मुस्लिमों के खिलाफ उकसा दिया था। उससे हिंदुओं का एकतरफा वोट भाजपा को मिला था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ली गई बढ़त के बल पर ही भाजपा ने पूरे देश में चुनाव जीता था।

यह मोदी सरकार की किसानों की उपेक्षा का ही परिणाम था कि भाजपा के हाथ से मध्य प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ और कर्नाटक राज्य निकल गए। यही वजह रही कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने लघु एवं सीमांत किसानों को साधने के लिए 6,000 सालाना देने की घोषणा की। पर गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के लिए कुछ न कर सके। इस वजह से गन्ना भुगतान कम होने के बजाय बढ़ता ही गया। स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर 12 हजार करोड़ रुपये बकाया है। तमाम आंदोलनों के बावजूद किसानों को बकाया भुगतान न हो सका। योगी सरकार के 14 दिनों में गन्ने का भुगतान होने के वादा भी धरा रह गया। गन्ना मिलों पर पहुंचाने के कई महीनों बाद भी भुगतान नहीं हो पा रहा है।

इस माहौल को भांपकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरठ की एक रैली में योगी सरकार का बचाव किया था। 28 मार्च को हुई इस रैली में मोदी ने अखिलेश सरकार पर 35 हजार करोड़ रुपये योगी सरकार के जिम्मे छोड़ देने का आरोप लगाया था।

माना जा रहा है कि देशभर की चीनी मिलों पर इस पेराई सत्र का बकाया 20 हजार करोड़ रुपये के पार कर चुका है, जिसमें सबसे बड़ा उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक का मामला है। उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से 45 और महाराष्ट्र के 36 जिलों में से 24 में लोग गन्ने की खेती पर निर्भर हैं। किसान और मजदूर दोनों इसी खेती से अपने परिवार को पालते हैं।

पिछले पेराई सीजन 2017-18 में भी गन्ना किसानों को बकाया भुगतान में देरी हुई थी। जब उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के साथ ही केंद्र में भी भाजपा की सरकार है तो चालू पेराई सीजन में हालात सुधरने के बजाय और बिगड़े हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के नाम पर चीनी मिलों को ब्याज मुक्त कर्ज देने के साथ ही चीनी के न्यूनतम बिक्री भाव में भी बढ़ोतरी की थी।

यह किसानों का आक्रोश ही है कि उत्तर प्रदेश के अमरोहा और बिजनौर जिले के कई गांवों में भाजपा नेताओं की नो एंट्री के बोर्ड लगे हुए हैं। किसानों के लिए संघर्षरत किसान मजदूर संगठन के संयोजक और किसान मजदूर पार्टी बनाने वाले बीएम सिंह का कहना है कि उत्तर प्रदेश के करीब दो करोड़ गन्ना किसानों का बकाया चीनी मिलों पर है। इससे किसानों में रोष है जिसका खामियाजा भाजपा को लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा। उन्होंने किसानों की दुर्दशा के लिए भाजपा के साथ ही कांग्रेस, सपा और बसपा को भी जिम्मेदार ठहराया। वोट के नाम पर वह किसानों के नोटा बटन दबाने की बात करते हैं।

भारतीय किसान यूनियन के नेता युधवीर सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा दिए गए पैकेज के बावजूद किसानों को उनका बकाया भुगतान क्यों नहीं किया गया। क्यों अभी भी बकाया पाने के लिए किसानों को संघर्ष करना पड़ रहा है। स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता और लोकसभा सदस्य राजू शेट्टी का कहना है कि बकाया भुगतान न होने से महाराष्ट्र के गन्ना किसानों को दोहरी मार पड़ी है। सूखे के चलते राज्य के किसानों को पहले ही आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए राज्य के किसान राज्य के साथ ही केंद्र सरकार से भी नाराज हैं।