विपक्ष ही कमजोर कर रहा है सत्ता परिवर्तन की लड़ाई

एक सशक्त विपक्ष के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत महसूस की जा रही है। कांग्रेस ने भले ही जनता को न्याय दिलाने का भारी भरकम विज्ञापन टीवी चैनलों पर चला रखा हो पर उसकी रणनीति से ऐसा लग रहा है कि जैसे वह 2019 के लिए नहीं 2024 के लिए लड़ रही है। इसी मुद्दे का विश्लेषण कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार चरण सिंह राजपूत।

लोकसभा चुनाव का परिणाम तो 23 तारोख को आएगा पर विपक्ष के प्रदर्शन से ऐसा लग रहा है कि उसने मतगणना से पहले ही अपनी हार मान ली है। कांग्रेस ने भले ही जनता को न्याय दिलाने का भारी भरकम विज्ञापन टीवी चैनलों पर चला रखा हो पर उसकी रणनीति से ऐसा लग रहा है कि जैसे वह 2019 के लिए नहीं 2024 के लिए लड़ रही है।
सबसे प्रदेश प्रदेश उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा गठबंधन की लड़ाई भले ही भाजपा से हो पर गठबंधन के मुख्य नेता मायावती और अखिलेश यादव भाजपा से ज्यादा कांग्रेस को कोसते हुए प्रतीत हो रहे हैं। वह बात दूसरी है कि उत्तर प्रदेश पर लंबे समय तक सपा औऱ बसपा ने ही बारी बारी से राज किया है।
प्रधानमंत्री के खिलाफ सबसे अधिक मुखर रहने वाले आप संयोजक अरविंद केजरीवाल भी भाजपा से ज्यादा कांग्रेस पर आक्रामक हैं। सपा संरक्षक मुलायम सिंह ने फिर से ट्वीट के माध्यम मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कामना कर दी है। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के योग्य न बताते हुए ममता बनर्जी की पैरवी कर रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू पहले भी एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। अब तक चुनाव प्रचार पर नजर डाले तो भाजपा सत्ता में रहकर भी विपक्ष से ज्यादा मेहनत करती दिखाई दे रही है। यदि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को छोड़ दें तो इस भीषण गर्मी में विपक्ष के अधिकतर नेताओं के चेहरे पर पसीना तक नहीं देखा गया है। कमरों, गाड़ियों यहां तक कि रैलियों में भी मंच पर वातानुकूलित माहौल देखा जा रहा है। वह बात दूसरी है कि जिनके वोटों से ये लोग सत्ता की मलाई चाटने को तैयार बैठे हैं वे धूप में तप रहे हैं।
चुनावी मुद्दों के मामलों में भी प्रधानमंत्री को घेरने वाले मुद्दों को न पकड़कर आपस में एक दूसरे को कमजोर करने वाले मुद्दों को पकड़ रहे हैं। जो मुद्दे विपक्ष को चुनाव पर प्रचार में उठाने चाहिए थे वे सुप्रीम कोर्ट को उठाने पड़ रहे हैं। जो डिफाल्टर पूंजीपति जनता का अरबो खरबो रुपये दबाये बैठे हैं। उनकी सूची उजागर करने को रिजर्व बैंक को सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ रहा है । सुप्रीम कोर्ट को प्रभावित करने के चंद अमीरों के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तो मजबूती से जनता के बीच ले जा रहा पर जिस विपक्ष को यह मुद्दा चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए था उसे उठाने से विपक्ष बच रहा है। जेट एयरवेज मामला मुद्दा देश का इस समय बड़ा मुद्दा है पर विपक्ष की सूची में यह कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। इसे क्या माना जाए कि विपक्ष अपने गलत कारनामों की वजह से चुप है या फिर इसमें दम नहीं है।
अभिनेता अक्षय कुमार का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू को सोशल मीडिया तो पेड न्यूज बता रहा है पर विपक्ष जातिवाद और परिवार वाद में ही उलझा हुआ है। ऐसा लग रहा है कि विपक्ष चुनाव जीतने से ज्यादा अपना गला बचाने की रणनीति अपना रहा है। जनता भी इस नाकारे विपक्ष से चमत्कार की उम्मीद कर रही है।
निश्चित रूप से जनता अपनी पर आ जाये तो सत्ता परिवर्तन उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं। पर विपक्ष के उदासीन रवैये से जनता निराश नजर आ रही है। सोशल मीडिया पर भी भाजपा की आईटी टीम का कब्जा है। विपक्ष यहां भी नाकारा बना हुआ है। इसका फायदा मोदी लगातार उठा रहे हैं। उनका आत्मविश्वास आसमान पर पहुंच रहा है।
मोदी ने बड़ी चालाकी से चोरों को जेल के दरवाजे तक पहुंचाने की बात कर ऐसा माहौल बना दिया है कि मोदी के फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद जैसे सब भ्रष्ट राजनेता, ब्यूरोक्रेट और पूंजीपति जेल की सलाखों के पीछे होंगे। लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि मोदी तो इस सरकार में भी भ्रष्ट लोगों के संरक्षक रहे हैं और आगे भी होंगे। मायावती, अखिलेश यादव जैसे नेताओं पर भी इसलिए दबाव बनाया जा रहा है कि यदि सरकार बनाने में एनडीए की सीटें कम रह जाये तो इनका समर्थन लिया जा सके । जेल में भेजने का डर दिखाकर मोदी कथित चोरों को एनडीए का हिस्सा बनाएंगे। मतलब जिन लोगों के मोदी समर्थक जेल में जाने की सोच रहे हैं वे सत्ता की मलाई चाटते प्रतीत होंगे। मायावती के तो एनडीए में मिलने की चर्चा बहुत जोरों से चल रही है।
जनता फिर से ठगा महसूस करेंगी। जो लोग इस विपक्ष से कुछ उम्मीद लगाए बैठे हैं वे झटका झेलने के लिए तैयार रहें। जमीनी संघर्ष कर रहे लोगों को अभी से ही कड़े संघर्ष के लिए तैयार रहना है। यदि चाहते हो कि देश में सत्ता के साथ व्यवस्था का भी परिवर्तन हो तो देश को समर्पित लोगों को एक मंच पर लाकर एक वैकल्पिक व्यवस्था के लिए संघर्ष करना होगा। तभी तो बीच चुनाव में ही स्वराज इंडिया, सोशलिस्ट पार्टी भारत, किसान मजदूर पार्टी के साथ ही बड़े स्तर पर संगठन देश को वैकल्पिक व्यवस्था देने में जुट गए हैं।