एक देशी कहावत है-सात मूस खाय के बिलार चली हज का। यानी सात चूहे खाने के बाद बिल्ली धार्मिक होने का नाटक कर रही है। ऐसे ही एक स्वनाम धन्य दैनिक जागरण की नोएडा यूनिट में हैं, जिन्हें चिंदी चोरों के गुरु के नाम से जाना जाता है। उनके लिए चिंदी चोरों का गुरु लिखना ही पर्याप्त है, क्योंकि इस कर्म से वह ज्यादा आसानी से पहचाने जाते हैं।
इतिहास गवाह है कि उन्होंने दारू की बोतल न पेश करने वाले को कभी नौकरी नहीं करने दिया। जिसने दारू की बोतल पेश कर दी, उसके लिए दैनिक जागरण जैसे महापापी के बैनर पर मानो दलाली करने का दरवाजा ही खुल गया। पैदल चलकर जागरण में भर्ती होने आए तमाम लोगों के पास आज चमचमाती कारें हैं।
महिला कर्मचारियों से छेड़छाड़ के मामले में तो ये पक्के गुरु हैं। न जाने कितनी बार महिला कर्मचारियों ने इन्हें माफी मांगने के लिए मजबूर किया, लेकिन ये आदत से मजबूर हैं। आज कल उन्होंने एक नया पाखंड रचा है। सिर पर चोटी, कंधे पर जनेऊ और मुख पर राम। हर कुकर्म आजमाने के बाद उनका नया भेष चौंकाता है, शक पैदा करता है और उनके किसी नए छल की आशंका से डराता भी है, क्योंकि बड़े पाप करने के लिए ही इंसान भेष बदलता है।